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अन गुढीप पुरा
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।।मत |||| इस बाग अंदर एक धर्म च । यही विराम का टिकानारे ।। मत० ॥ १० ॥ ज्ञान दर्शन चरित्र तप फन है । बेशक त इनली खानारे । गत११॥ यह फल खाला, अमर होजाना । प्राशगमन को मिटानारे ॥ मत० ॥ १२॥ चौथमल रहे। मन पत्नी ! गुरु हीरालाल गुण गानारे || मत० ॥ १३ ॥
३२७ अनिवार्य गमन. । तज-याला न साद याला दिस जाग में फिदा)
करना जो चाह करले, जाना जर होगा। यहां तक रहांग पेंट, जाना जरूर होगा ॥टर ।। कहां गम और लक्षमन, गये भीम सौर अर्जुन । एक दिन तो तुमको यहां से, जाना असर होगा। काना० ॥ १॥ हंस हंस के जुल्म करते, नहीं शास्वत से डरते । अाखिर नतीजा इनका पाना जस्र दागा। करना०॥ २॥ गुलशन की पहार देखी, पुल खुल रही है चेखी । पाने ही पाज फोरन, जाना जरूर होगा ॥ करना। कोटी पाग गाड़ी, नारी जो ग्रा-स्यारी सपछोर की सवारी, जाना जरूर होगा। परना०॥४॥ चौथमल गुनाय, एक धो साथ भाव । चाह मानो या न मानो, बाना जरूर होगा। करना० ॥ ५ ॥