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जने सुवोध गुटका।
टक्का
३२८ जुत्रा त्याज्य.
. (तर्ज-दादरा) जुआ खेलो न शिक्षा हमारीरे ॥ टेर ॥ जुंबा ही इजतमें, धब्बा लगावे । दौलत की होती है ख्वारीरे ॥ जुत्रा० ॥ १ ॥ जुंबा ही चोरी करना सिखावे । सर्व व्यसनों में यह सरदारी रे ।। जुत्रा० ॥२॥ जीता जुआरी बन जावे लाला । हारे से होता भिकारीरे ॥ जुत्रा० ॥३॥ राजा नल और पांडव पाचों । जब जुआ ने विपदा डारीरे । जुत्रा० ॥ ४ ॥ चौथमल कहे जूश्रा को छोड़ो। है इससे भली साहुकारीरे ॥ जुत्रा० ॥५॥
___ ३२६ अाधुनिक अधार्मिकता. . . : - [तर्ज-हिवरे हिन्दू पणो जाय हालियो] .
प्राणिया कैसे होवेगा निस्तारो, जरा हृदय तो ज्ञान विचारोरे ॥ टेर ॥ मनुष्य तन चिन्तामणि पाया, फिर विषयों में क्यों ललचाया। जग समझो सुपना-सी मायारे ॥प्राणिया०॥ १॥ तूं रात्री भोजन खावें । कन्दमूल पे करुणा न लावे। बीड़ी सिगरेट का धुंवा उड़ावरें ।प्राणिया० ॥.२ ! पर नारी पे दृष्टिं घरेहै; कईके जुतियों की मार पड़े है, तो मी निर्लज्ज होयके फिरें हैं रे।। प्राणिया ॥३॥ दारु पीवे व मांस को खाने । फिर हिन्दू का नाम धरावे ।