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________________ अकाराद्यनुक्रमणिका पृष्टाङ्क -३०५ २६६ २१६ १६१ १३३ सं० .. श्रए पियारो मत बिगाडी । २ ए मन मेरारे ३ अंकल तेरी गई किधर .. ४ अकल भ्रष्ट होती पलंक . ५ अंगरे पाराम चाहंत हो ६ अंगर चाहं श्राराम ७ आग को जला जला के .. ८ अच्छी सोबत मिली पुण्य ६ अजल का क्या भरोसा.हे १० अजव तमासा कर्म संग ११. अजि भांग पियोतो मारे १२ अब खोल दिल के चश्म , १३ अब तो नहीं छोडांगां: , १४ अंबं पाके मानव भव रत्न १५ अब लगा खलक मोये १६ अभिमांनी प्रानी डर तो १७ अमर कोई न के जी १८ श्रय जवानो चेतो १६ अय जवानो मानो मेरी २० श्रय दिला दनिया फना. २१ अयोध्या नगरी को २२ अरे जाती है बीती यह २३ अरे जो श्वास आता है : . २४ अरे देखी तुमारी अकल. २५ अरे रहनेभी क्यों २६ अरे सत्सङ्ग करने में ' २७ अर्ज पर हुक्म श्री । • 9 ७३ १२० ५२ १९४ १३४ १२८ १७६ १०
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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