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________________ पृष्टाई . :१३ २६४ ... । . . . .mi .. ३१४ मानो यह कहन हमारीके ३१५ माया दुनियां की है ३६६ मारा वीर प्रभुका ३१७ मारे मन्दरिये वेरखने ३१८ मालिक का सुनलो ३१६ मांस अभक्ष नर का ३२० मिली कैली अमोल ३२१ मिले गर वादशाही तो ३२२ मिले पाप उदय कुलक्ष । ३२३ मुगत में सुख है ३२४ मुझे कौन बतावेमा ३२५ मुझे गुरुजी बतावेगा ३२६ मुझे भूल के जालिम ३२७ मुद्रा मुझर की ३२८ मुनाफर यहां से ३.६ मेरा ता धर्म कहने का ३३० मेगापि गिरनारी ३३३ मग प्याग सात राजु ३३२ में से करूं असर ३३ में कैसे करूं अररर ३३४ मतो आई शरण ३३५ भैतो मूंजी छु साहुकार ३३६ मतोही आँगुन गारो ३३७ मैं दिलोजान से कहतीरे ३३८ मने अच्छी तरह से ३३६ मोटाने एवो करवो 380 मोरा दे मैया प्यारा mammy ४ ११६ १२४ રૂર १२६ १२० २०७
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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