SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०४) जन सुवोध गुकटा। . ... . . . . . . . . . . . दिया। यों चनो दानी तुम बतलाया, भारत को वीर .. जिनेश्वर ने ।। १ ।। राज ऋद्धि और भोग सभी, एक छिन में त्यागन कर दीना । यो मार्ग त्याग का बतलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने ॥ २ ॥ अहिंसा सत्य दत्त वाचर्य, अकंचन व्रत खुद धारलिया। यों. धारन करना सिखलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने .।। ३ ।। कठिन तपस्या श्राप करी, और घोर परिपह सहन किए। यों करम काटना दिखलाया, भारत को वीर जिनेश्वर ने ॥ ४॥ लेकर केवल फिर मोक्ष गए, अन्तिम सन्देश सुनाया है। ' कहे चौथमल यों जाना मोक्ष, जितलाया वीर जिनेश्वर ने ॥ ५ ॥ नरवर.४१४ (तर्ज--एक तीर फेंकता जा) . पैदा हुआ है जहां में, एक दिन तो वह मरेगा। जैसे मका बना है,आखिर तो वह गिरेगा ।। टेक ।। संयोगी जो पदारथ, उसका वियोग होगा। हरगिज़ रहे न कायम, सो यत्न भी करेगा ॥ १ ॥ धातु अनल वायु, पानी पशु मनुज भी 1.संयोगी नाम सारे; कवं ज्ञान यह धरेगा १॥ २ ॥ किस को तूं रो रहा है, किस में तूं मोह रहा है। अज्ञान के हटे विन, नहीं आतमा तिरेगा 1.३:1, जीव
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy