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"जैन सुबोध गुटका |
नम्बर ४१२ ( तर्ज - घोसो बाजोरे )
. ( ३०३ )
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श्रानंद छायोरे श्रानंद छायोरे, माता त्रशला महावीर ने जायोरे || टेर || तीन लोक में हुई खुशी, जब जन्म आपने पायो | स्वर्ग नर्क मनुष्य लोक से, तम हटायेोरे ॥ १ ॥ लप्पन कुंवारी मिल कर आई, उन्हने मङ्गल गायोरे । शक इन्द्र ले प्रभुजी को, मेरु पै सिघायोर ॥ २ ॥ चौसठ इन्द्र महोत्सव कीनो, सब ने हर्ष मनायोरे । महावीर दियो नाम आप, जब मेरु पुजायारे ॥ ३ ॥ तीस वर्ष गृहवारा रहे फिर, जग सारो छिटकायोरे । घोर परिपढ़ सहन करी, केवल प्रगटायो रे || ४ || जग जीवों पर दया करीने, द्विविध धर्म बतायोरे । कर्म काट आखिर में प्रभु, अमर पद पायोरे ॥ ५ ॥ साल व्यासी चौथमल कहे, मङ्गल श्राज मनायोरे | बम्बई शहर कान्दावाड़ी में जोड़ सुनायेोरें ॥ ६ ॥
नम्बर ४१३ ( सर्ज - कमलीवाले की )
- देकर सद्बोध जगाया हैं, भारत को वीर जिनेश्वर मे । सुपंथ सिधा दिखलायां है, भारत को वीर जिनेश्वर ने ||टेर ॥
एक क्रोड श्रष्ट लक्ष सोनैया, नित्य बारें मास तक दान
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