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MINARose
जन मुदोष गुटरा बढ़ायो जी। मत्सरता को देश बटो दे प्रेम बढ़ाया जी ।। दुर० ॥ १ ॥ देखी सुखी और के ताई, तुम प्रसन्न हो जावोजी । गुण ग्राही हा गुणी पुरुप का, तुम गाणु गाथाजी ।। दृ०॥२॥ दया धर्म जो कोई दीपाय, तुम सामिल हो जानोजी । उत्तम कार्य का विरोधी बन गत धका लगायो जी ।। दुर० ॥३॥ मत्ार परियो कौरव पाण्डव से, चाया राज्य लुड़ावा जी । जीत हुई पाण्डव की परयो, कारख पछतावानी ।। दृर० ॥ ४॥ पीठ महापीठ मुनि हृदय में, लायं मत्सर भायोनी । नाही सुन्दरी चनी ध्यान, इन ऊस लामोजी ।। दुर० ॥ ५॥ मारवाड़ में शहर मादड़ी, हुयो इक्यासी श्रावोजी। गरु प्रसाद चौथमल कडे, पाप हटायोनी ।। दुर० ॥ ६ ॥
११ ध्यानादर्श. (तई-तरकारी यो मालन ) गुन मनुश्शा मेरा, ध्यान लगायो ऐसा देश से टि। ज्यू पनिहारी सर जल लाये, करे पान लगाई। नाली लगावे दोनों करम, ध्यान गगरिया मांही । सुन० ॥१॥ जैसे गैया रे विपिन में, शरत चरिमा मांही पनिकता का चिच पनि में, कमी पिसानी नाही ॥ मु ॥२॥ मानी का चित्त रहे पान में, गी नित निगालोमी