________________
(6)
जैन सुवोध गुटका।
१५० खामांश. (तंज-या हसीना वस मदीना, करबला में तु न जा) महावीर का फरमान है, खामोश वहतर चीज है। दिल पाक रखने के लिये, खामोश वहतर चीज है। टर ॥ शांति कहो चाहे क्षमा, और गम भी इसका नाम है । दोस्त जहां तेरा वने खामोश वहतर चीज है ! महा० ॥१: जोश खाके वीजेली, दरियाव के अन्दर पड़े । नुकसान कुछ होता नहीं, खामोश वहतर चीज है ॥ २॥ खामोश खञ्जर देखकर, 'दुश्मन की ताकत नहीं चले । विन काष्ट के पाक्क जैसे,सामोश बहतर चीज है ॥३॥ तप में ऋषि युद्ध में हरी, श्रेष्ठ विषमण दान से । अरिहंत की यह वीरता, खामोश वहतर चीज है॥४॥ खामोश कर श्रीराम ने, बनवाल का रास्ता लियां निजसुखमाल ने क्षेवल लिया, खामोश वहतर चीज है ॥५॥ खामोश ले राजा परदेशी, स्वर्ग के अन्दर गया। खंधक मुनि मुक्ति गये, खामोश बहतरं चीज है ॥ ६ ॥ ज्ञान ध्यान तंप दया, और सर्व गुण की खान है। तारीफ फैने मुल्क में,
खामोश वहतर चीज है ॥ ७ ॥ पाप होवे भस्म जैसे, शीत से 'सब्जी जले ! चौथमल कहे ए दिला ! खामोश वहतर चीज
१५१ मंदोदरी का रावण को समझाना
(तर्ज-मांड) ... मंदोदरी कहे यूं कर जोड़, पिया अनीति कायको करे ॥टेर सौता नारी या रामचन्द्र की, लतियाँ माय सरे। हरन करी चुपके वन सेती, लाके वाग घरे ॥ पिया०.॥ १॥ दशरथ कुलवधु के निमित्त से, रावण प्राण हरे । सो बीतक यो दीसे