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जैन सुबोध गुटका ।
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ले जाते हैं ॥ ३ ॥ मर्द की स्त्री बने, नपुसंक भी हो जाय । कदे चौथमल वह पापी, विश्व में भ्रमाय । फिर मोक्ष वह कय पाते हैं ॥४॥
१४६ दया दृष्टि. (सज-बिना रघुनाथ के देखे नहीं, दिलको करारी है ) अगर श्राराम चाहते हो तो, ये नसीहत हमारी है। किसी का ना दुखाना दिल, सबों को जान प्यारी है ॥टेर ॥ सभी जीव जीवना चाहें, नहीं खुश कोई मरने से । मेरे मकसद पे करना गौर, जो उसकी इंतजारी है। अगर० ॥१॥ हिन्दू दया पुकारे है, मुसलमा रहम कहते हैं । जिवा करते करे झटका, दोनों ने क्या विचारी है ॥२॥ जो जो जान रखते है, कहे रब वो मेरा कुनबा । पसद मुझको जो दे पाराम, ये हदीश जारी है ॥ ३ ॥ विष्णु भगवान का फरमान, पचावे जो किसी की जान । सब दानों में वहतर दान, गीता पुरान जहारी है ॥ ४ ॥ जैन शाख का करलो छान, श्रेष्ठ पतलाया अभयदान । सभी जैनी करें परमान, जैन शास्त्र जहारी है ॥५॥ कहे ईसा अहले इस्लाम, छटा हुक्म वाईचिलका । तू किसी को न मारियो पेसे, खत्तम बस दुई सारी है ॥६॥ मोही को शान मौला में, रूहे सब बदला मांगेगा । न छोड़ेगा कभी हरगिज, दीने इस्लाम जारी है ॥७॥ जैसी समझो हो अपनी जान, वैसी समझो बिगाने की। सच्ची सच्ची कही हमने, फेर मर्जी तुम्हारी है। गुरु हीरालालजी परसाद,चौथमल कहे सुनो पालम | घोही निजात पायेगा, दया को जिसने धारी है॥६॥
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