________________
(६)
जैन सुबोध गुटका।
है। जन्म तुम सफल करो अपना, समझ कर खल्क ख्याल सपनाजी जिन तूही ॥१॥
१४७ इल्म की महत्ता. . (तर्ज या हसीना वस मदीना, करवला में तून ना)
इल्म पढ़ले अय दिला, इसका गरम बाजार है। आलिमों की हाजरी में, कई खड़े लरदार हैं । टेर ॥ जिल कौम में लिख पढ़े, उसका सितारा तेज है । जिस देश में विद्या हुन्नर, वह देश ही गुलजार है । इल्म० ॥१॥ दिवान, हाकिम, अफसर्ग, वील, वैरिस्टर बने । बदौलत इस इल्म के दुनियां कहे हुशियार है॥२॥ इल्म से अकल बड़े, और अकल ले जाने प्रभु । सच झूठ दोनों फैसले का, वो तजरबेदार है ॥३॥ विन इल्मके इन्सान और, देवान में क्या फर्क है। गौर कर देखो जरा, फक्त इल्म की ही बहार है॥४॥ पढ़लो पढ़ालो इल्मको, खेलना खेलाना छोड़दो । कहे चौथमल भित्रो सुनो, नसीहत हमारी सार है ॥ ५ ॥
१४८ दगेबाजों की दुर्दशा
(तर्ज-शेरखानी दादरा) मत कीजो दगा समझाते हैं । टेर ॥ दगा तो है बुरा, मुहव्यत छुडायदे । दूध में कांजी पंड पेला वनायद । यही हरवार जिताते है । मत० ॥१॥ वातों में है लफाई, दिल में
और है, अमृत का है ढकन, विष कुम्भ के तोर है। नहीं कोई भरोसा लाते हैं ॥२॥ बांस की जड़ के मानिंद, माँढे का श्रृंग जान । बैल का पेशाव, तिवंश की पहचान । ये चारों गति