________________
जन सुबोध गुटका।
(६९)
माने, क्यों ध्यान धरे ॥२॥ राम और लक्षमण शत्रुघन श्रा, लंका बाहर खरे । सीता दे मम लज्जा खो, तो सव काज सरे ॥ ३ ॥ सीता दिया पीछे सेती, जो श्रीराम लरे । तो होये जीत आपकी निश्चे, ना मम वाक्य फिरे ॥ ४॥रावण दोले मुर्ख नारी, श्रीगुन पाउ भरे । चौथमल कहे माने कर शिक्षा, भावी नांय टरे ॥ ४ ॥
१५२ उपदेशक का कथन (तज-या हसीना वस मदीना, कर बला में तू न जा)
आकवत के वास्ते, कहना हमारा फर्ज है । मर्जी तुम्हारी मानना, कहना हमारा फर्ज है ॥ टेर .॥ मुसाफिर खाने में श्राकर, गरूर करना छोड़दे । नेकी करले ए सनम ! कहना हमारा फर्ज है । आक० ॥ १ ॥ माता पिता भाई भतीजा, साथ में पाता नहीं। तो फिर मुहव्यत क्यों करे, कहना हमारा फर्ज है ॥२॥ फिसका वसीला है वहां, दिल में तो जरा गौर कर । तूं याद में उसके रह, कहना हमारा फर्ज है ॥ ३ ॥ अव करले तू बड़ों का, महसान कर कोई और पर । रहम दिल में ला जरा, कहना हमारा फर्ज है ॥ ४॥ देता नसीहत चौथमल, करले इबादत जिन से ! चार दिन का हुश्न है, कहना हमारा फर्ज है॥५॥
१५३ मालिक का कलाम.
(तर्ज समक्ति की देखी बहार ) मालिक का सुनलो कलाम-कलाम मेरे प्यारे, मालिक० ॥ टेर।। कत्ल का करना रवा नहीं है, है यह काम निकाम ॥निकाम० ॥१॥ नया का करना, शराय का पीना, लिखा