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'जैन सुबोध गुटका।
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धर्म सें मत हटो, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ ४॥ धैर्य का धारो धनुष और तीर मारो तर्क का । कुयुक्ति का खंडन करो तुम, धर्म की रक्षा करो ॥५॥ धर्मसिंहः मुनि लवजी ऋषि लोका शाह संकट सहा । धर्म को फैला दिया, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ ६॥ गुरू के परसाद से कहे, चौथमल उत्साहियों । मत 'हटो पीछे कभी तुम, धर्म की रक्षा करो ॥७॥
७६ स्त्रियों को प्रतियोध, (तर्ज-यारो नरभव निष्फल जाय जगत का खेल में) - सखी सत्य देऊ में शिख, हृदय घर ध्यान तू ।। टेर ॥तन 'सज कर सिंणगार यह सोले, मुख में चाबे पान तू । दया नहीं लावे जीवों पर,पेसी बनी मस्तान तू ।। सखी० ॥१॥ योवन रंग पतंग उड़े कल,क्यों बनी नादान तू । पुण्य योग से हुई मनुष्यणी, दिल में कर अहेसान तू ॥२॥ कुदेव कुगुरु कुधर्मका, पक्षपात मन तान तू । किधर गई है बुद्धि तेरी, नहीं पीती जल छान तू ॥३॥ देवर जेठ कंथ कुटुम्ब संग, मत कर ताना तान तु । कानों से सुन बाना प्रभु की, हाथों से दे दान तू ॥४॥ पर पुरुष को ऐसा समझ, ले भाई बाप समान तू । लज्जायुक्त नयन पढ़ विद्या, तन से तप ले ठान तू ।। ५ ।। गंधी देह का क्या है भरोसा, मत कर मान गुमान तू । चार दिनों की समझ चांदनी करले सत्य धर्म ध्यान तू ॥ ६॥ गुन्नीसे इकतर साल में लश्कर ग्रीष्म ऋतु जान तू । गुरु प्रसाद चौथमल कहे हो सीता सी प्रधान तू ॥७॥