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जैन सुबोध गुटका।
प्रगट जिताते हैं, | शुभा० ॥१॥ कम मत बांधना कोई, कर्म शेतान है जहां में । अवतार श्री राम लक्षमण को, उठा बन में ले जाते हैं ॥२॥ त्रिखंडी नाथ जो माधव, थे यादु वंश के भानु । जरद कुमार के जरिये, पांव में बाण खाते हैं ॥ ३ ॥ सत्यधारी हरिचन्द को, चंडाल के घर लेजाते हैं। पतिव्रता सती तारा, से ये पानी भराते हैं ॥४॥ कभी तो नर्क के अन्दर, ताते स्तंभ कराते हैं। कभी सुर लोकके अन्दर, ताज शिर पर सजाते हैं।। ५ ॥ अजब लीला करम की है,कथन करने में नहीं आती। राजा नल को दमयंति से, जुदाई ये कराते हैं ॥६॥ कथे यों चौथमल बानी, अरे सुन लीजो भव प्राणी । भजो तुम देव निर्मानी, करम सब भाग जाते हैं ॥ ७ ॥
७५ उद्बोधन. (तर्ज--या हसीना वल मदीना,करबला में तू न जा)
उठो बादर कस कमर, तुम धर्म की रक्षा करो। श्री वर के तुम पुत्र होकर, गीदड़ों से क्यों डरो ॥टेर ।। दुर्गति पड़ते जो प्राणी; को धर्म आधार है । यह स्वर्ग मुक्ति में रखे, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ उठो० ॥ १॥ धरमी पुरुष को. देख पापी; गज श्वानवत् निन्दा करे । हो सिंह मुश्राफिक जवाब दो, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ २॥ धन को देकर तन रखो, तन. देके रक्खो लाज को । धन लाज तन अर्पन करो तुम धर्म की रक्षा करो !! ३॥ माता पिता भाई जंबाई, दोस्त फिरे तो डरे नहीं । प्रचार.