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जैन सुबोध गुटका।
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२३३ कुमता नारी.
(तर्ज-बुढ़ाने परणाचे बेटीरे ) प्रीति पर घर मत कीजेरे, कुल मर्याद से रीजरेटर। प्यारी से अंतर करी, पर घर मांडे प्यार | नाति शास्त्र मांही कह्यो, ते प्रीतम न धिक्कार ॥ प्रीति ॥ १॥ कुमता नारी कामण गारी, कर मीठी मनुहार । चेतन वालम को बिल मई, ले जाये बाग मंझार ॥ २ ॥ अनन्त शल तो हो गयो, रमता इनके संग । बड़ो अफसोस विटल हुारे, कैसे सुधग्गा ढंग ॥३॥ सुमता सुन्दर को तुम्हें, मुजरो लीजो झेल चौथमल कहे गुरु प्रसादे, दसी मुक्ति महेल ||४||
२३४ गुरु प्रार्थना. (तर्ज-मीगं ऊंचा राणाजी का गोखरा) गुणों का धारी हां यो उग्र विहारी तारो २हो गुरुजी मांने वेग सं॥टेर । इसी घोर संसार समुद्र में, एक श्राप तणो श्राधार हो ॥१॥ मेरी नाव पड़ी मध्य धार में, जिन्हें वेग लगायो पहिले पार हो । गुणा का धारी० ॥२॥ मैं शरणे पड़ायो अब श्राप के, आप ही हो प्राणाधार हो॥३॥ मेरे कलेजे की कोर किकी अांख से, मेरे श्राप हो हृदय का हार हो ॥ ४ ॥ फूल मुगंध घृत दूध में, ज्यूं बसे मुझ हृदय मंझार हो ॥ ५ ॥ पूर्व केशी श्रमण मुण्या महामुनि, जाने तारयो परदेशी भूपाल हो॥६॥ संजती ने गृव माली