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जैन सुबोध गुटका |
मुनि, श्रेणिक ने अनाथ अणगार हो ॥ ७ ॥ इत्यादिक तारया आपने, मारो करोजी उद्धार हो ॥ ८ ॥ मैं तो इस भव आपको भेट्या, सच्चा पंच महाव्रत धार हो ॥ ६ ॥ गुरु हीरालालजी से या विनंती, चौथमल को दीजो मुक्ति वास हो ॥ १० ॥ उन्नीसे छासठ श्रगण विदि, ग्राम नाई उदयपुर के पास हो ॥ ११ ॥ .
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२३५ सर्व परिचय,
· ( तर्ज - लावणी छोटी कड़ी ) वही शूरवीर जो इस मन को बस काले, वोही तेरु भवसिन्धु से तिरले || ढेर || वह सती जो पति की श्राज्ञा माने, वही पुत्र रहे पिता वाक्य परमाने । है वही संत जो राग द्वेष नहीं ताने, वही पण्डित जो पर प्राण श्रान्भवत जाने । है वही बींद जो शिव सुन्दरको वरले || वही ० ॥ ॥ १ ॥ वही धनवंत जो निर्धन को पाले है । बढी खानदां जो उत्तम चाल चाले है । है वही भ्रात जो बन्धु का कष्ट टाले है । है वही ज्ञानी, जो पर संशय गाले है । है वही होशियार जो आत्म कारज करले ||२|| वही व्यसनी प्रभु भजन का रंग लगावे । है वही सिद्ध जो गर्व बीच नहीं आवे | वही मासुख जो आशक के हृदय रहावे । है वही जन्म जो परमार्थ 'सद् जावें । है वही पापी जो धन बेटी
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