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जैन मुबाघ गुटका। (१५५) का हरले ॥ ३ ॥ है वही जे पी (M. P. ) जो जाति देश सुधारे। है वही मित्र जो मित्र का दःख निवारे । है वही वहा जो क्षमा, धैर्यता धारे।वहा सत्यवादी जो प्राण प्रण पर वारे। कहे चौथमल वही श्रोता जो शिना धरले ॥४॥
२३६ सुशिक्षा.
(तर्ज-लावणी चाल लंगडी) चंतन पाके मनुष्य जन्म को, प्रभु ध्यान ध्याना चाहिये । , हित शिक्षा उसीको अमल वीच लाना चहिये ॥ टेर ॥ शुभ कृत्य में विलम्ब न करना, भवसागर तरना चाहिये । ज्ञानी होके गर्व तुझको न कभी करना चाहिये । वुरे भले सुन थैन क्षमा कर पापों से डरना चाहिये। पंडित होकर अकाल मृत्यु न कभी मरना चहिये । चाहे जैसी स्ववान हो पर नारी के जाना ना चहिये ॥ १० ॥१॥ सी पुरुष के मर्म किसी को कभी नहीं कहना चाहिये । घर के भेद को किसी दुश्मन को ना देना चाहिये । कोई जीव के गुण को तज कर अवगुण लेना ना चहिये करना भलाई, गई में न तुझे रहना चाहिये । पाखंडी के जाल चीचमें तुझको थाना ना चहिये ।। २ ।। अपने मित्र को विश्वास देकर कशी बदलना ना चाहिये । उत्तम कुलकी चाल तब नीची ना चलना चहिये । जो अपने से मिले खुशी से उससे हर्ष मिलना चहिये । रांड भांड और अधम पुरुष से सदा टलना चहिये।