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जैन सुबोध गुटका ।
धर्मी होकर रात्रि भोजन, तुझको ना करना चहिये ॥३॥ देश बोलों का योग- मिला गफलत में सोना ना चहिये । गई वात को याद करके तुझे रोना ना चहिये । श्रावक की उत्तम करणी हाथों से खोना ना चहिये । माया जाल के झूठे नातों में तुझे मोहना ना चहिये । पुद्गल सुख को जान विनासित निजानंद पाना चहिये ॥४॥ शुद्ध भावों से देना दान और विद्या को पदना चहिये । गुरु कृग से चौथमल कहे ऊंचे दरजे चढ़ना चहिये । तप जप करके खास मुक्ति के बीच वरना चहिये । सफल जिन्दगी करना तुझ श्री वीर के गुण गाना चहिये ॥ ५ ॥ . .
२३७ भावना की उत्कर्षता.
(तर्ज-पंजी मुंडे बोल) " . महिमा फेलोरे २ इस शीलवत की, सुनजो बेलौरे । टेर। उत्तम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप जप गुण को आगररे । मोक्ष नगर जाता संग बटाउ, सिंह के ज्यूं पाखररे ॥ महिमा० ॥१॥ शील संध्या सर्व धर्म सधे, हुआ शील भंग सब भागेरे। इस कारण कर जतन शील का कहूं.हूं सांगेरे ॥२॥दान : मांह तो अभयदान है, सत्य में निर्वध वानीरे । तप में मोटो ब्रह्मचय्य, जग में वीर नाणारे ॥ ३ ।। वे मन. धारे शील नर नारी, तो स्वर्ग बीच में:जावरे । त्रशला नन्दन सूत्र उववाई में फरमावरे .॥४. ॥ बतीश ओपमा. शीलनत की, पश्न व्याकरण में जहारी।