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जैन सुबोध गुटका |
सुरेन्द्र नरेन्द्र गुण गावेरे जिनका, धन्य ब्रह्मचारीरे ॥ ५ ॥ सुदर्शन को संकट भेटयो, सुर नर होगया साखीरे । द्रोपदी की सभा बीच में लज्जा राखीरे || ६ || सिंह प्रजा हो विष अमृत हो सर्प पुप्प की मालारे । शील प्रभवे अग्नि हो वारि, टले जंजालार ॥ ७ ॥ शीलवंत भगवंत बराबर सदा पवित्र रहावेरे । स्वर्गापवर्ग में जाय विराजे, सुख सम्पत पावरे ॥ ८ ॥ उन्नीस बहत्तर की होली, ग्राम समदड़ी महिीरे | गुरु हीरालाल प्रसादे चौथमल जोड़ बनाइरे ॥ ६ ॥
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२३८ श्रायुष्य की चंचलता.
( तर्ज कोई ऐसी चतुर सखी ना मिली, मोधी पिच के द्वारे ) क्यों गफलत के बीच में सोता पड़ा, तेरा जावेगा हंस निकल एक पल में । ये तो दुनियां है देख मिसाले रगडी, कभी उसकी बगल कभी उसकी बगल में || टेर || तूं तो फिरता है आप दूल्हा बन ठन, तेरे साथ वराती हैं कौन सजन | यहां किस से करे अपना सगपन क्यों खोता है वख्त खाली कलकल में || क्यों० ॥ १ ॥ जो हिन्द के ताज को शीस घरे, जो लाखों करोड़ों का न्याय करे | वो राज्य को त्याग के फिरते फिरे, जो नूर से पूर थे तेज अकल में ॥ २ ॥ कहां पाडव कहां पृथ्वीराज चौहान | कहां बादशाह अकबर प्रोरंगजेब यह राज-तम्ल सदा न सज्जन, कभी उसका अमल कभी उसके अमल में || ३ || इस माल थौलाद जमीं के लिये, कई बादशाह मार