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(६५२) जैन सुबोध गुटका। कहनारे । टेर.।। उत्तम कुल नर जिन्दगानी, हर बार मिले नहीं प्राणीरे ।। कुचाल०॥१॥थे गांजा भांग ने छोड़ो, पर त्रिया से स्नेह तोहोरे ॥२॥ यह मांस भक्ष मंद पीना, त्याग २ तुझे कम जीनारे ॥३॥ मत पिओ तंबाखू नर नारी, यह लग देह के कारीरे ॥ ४ ॥ थे कमती तोल निवारों, चौरी ने दुरी टालोरे ॥ ५ ॥ याने सेव्यां दुर्गति जोक, याने त्यागे सो सुख पावरे ॥ ६॥ कहे चौथमल सुन भाई, मैंने सांच २ बतलाइरे॥७॥
२३२ धार्मिक उदासीनता
(तंज-जारी) : .. सीख सद्गुरु ने क्या दईरे, भूल गयो याद जरा नहींरे ॥ टेर। मनुष्य सव माही आवियो, कुल उत्सम तू पायो । दया धर्म नहीं सुहायो, जन्म तेरो फिट फिट सहीरे ॥ सीखः ॥ १॥ दया धर्म-दियो छोदी प्रीति, गुरु से जोड़ी: मून्य होगा फूटी कोड़ी, जिमशंकाः तो काई नहींरे ॥ २॥ काम भोग-माही राच, रिना तज लियो काचा, रीति करे तीन पांच, कीच में डाल दियो मांहीरे ॥३॥ मानी हिंसा में धर्म, बांध्या चीकना कर्म, यमः राखे नहीं, शरम, मारेगा मुद्गर तेरे ताईरे॥४॥ चौथमल गुरु प्रसाद, दया धर्म ले आराध आंगावेगा स्वाद, ले सुख शिव पुर में जाईरे ।। ५ || .........