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जैन सुबोध गुटका।
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बढ़कर है यही, महोब्बत तुड़ावे मिनिट में । सप मुत्राफिक डरे तुझले, क्रोध के परताप से । श्रादत० ॥१॥ सलवट पड़े मुंह पर तुरंत, कम्पे मानिन्द जिन्द के । चश्म भी कैसे बन, इस क्रोध के परताप से ॥२॥ जहर या फांसी को खा, पानी में पड़ कई मरगये । वतन कर गये तर्क कई, इस क्रोध के परताप से ॥ ३॥ बाल बच्चों को भी माता, क्रोध के वश फेंकदे । कुछ सूझता उलमें नहीं, इस क्रोध के परताप से ॥ ४॥ चंडरुद्र श्राचार्य, की मिसालपर करिये निगाह । सर्प चंड कोसा हुआ, इस क्रोध के परताप ले ॥५॥ दिल भी कावू न रहे, नुकसान कर रोता वही। धर्म कर्म भी न गिने, इस क्रोध के परताप से ॥ ६ ॥ खुद जले पर को जलाये, विवेक की हानि करे । सूख जाव खून. उसका, क्रोध के परताप से . ७ ॥ जन के लिय हंसना बुरा, चिराग को जैले हवा । इन्सान के हक में समझ, इस क्रोध के परंताप से ॥८॥ शैतान का फरजन्द यह, और जाहिलों का दोस्त है। बदकार का चाचा लगे, इस क्रोध के परताप से॥६॥ इबादत फाका कसी, सब खाक में देवे मिला। वीच दोजख के पड़े, इस क्रोध के परताप से ॥ १०॥ चाण्डाल से बदतर यही, गुस्ला बड़ा हराम है। कहें चौथमल कब हो भला, इस क्रोध के परताप से ॥ ११ ॥
८५ नारी भूषण.
(तर्ज-मांड मारवाड़ी.) पहिलो २ सखी री ज्ञान गजरा २ तुम्हें लगे अजरा ॥टेर ॥ शील की सारी ओढले पोरी, लज्जा गहिनो पहिन । प्रेम पान को खाय सखीरी, बोलो सच्चा वैन । प० ॥१॥ हर्ष को हार हृदय में धारो, शुभ कृत्य कंकरण सोहय । चतु