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जैन सुबोध गुटका ।
लज्जा तन धरजो। थे० . ॥ १ ॥ सुशिक्षा पुत्र पुत्री को सिखावे, तो मोटा हुश्रा से सुख पावे ॥२॥ कामी लंपट से वचकर रहीजे,थे पीहर स.सरा पर ध्यान दीजों ॥३॥पतिव्रत धर्म है जो तुम्हारो, सो याद रखो न विसारो ए॥४॥ भैरु भवानी पीर और होरो, नहीं समरथ क्यों फिरो दौरी ॥ ५॥ थे तो घमक चाल ताली द हंसना, ऐसी बातों से सदा बचना ॥६॥ विना छाण्यो पानी नहीं पोजो, जीवाणी यत्ना कीजो ॥ ७॥ सीता सती दमयन्ती तारा इनके चरित्रों पर करो विचारा॥६॥ गुरु प्रलादें कहे चौथमल गाई, तुम पक्की रहीजों संम्यक्त मांहीं En
..८३.आयु की, चंचलता.
(तर्ज-विना रघुनाथ के देखे) सज्जन तेरी उमर जाती देख, मुझे विचार आता है। नहीं ये वक्त सोने का, लाभ क्यों नहीं कमाता है ॥ टेर ॥ चाहे राजा चाहे राणा, चाहे हो बादशाह वजीर। चाहे हो श्रेष्ठी साहूकार, वहां किसका न खाता है ॥ सज्जन० ॥१॥ क्या माता पिता न्याती, क्या धन माल व हाथी। क्या तेरे संग के साथी, साथ में कौन आता है ॥ २॥ समय अनमोल जाता है, किसी को क्यों सताता है। वाज तू क्यों न आता है, जहां का झूठा.नाता है ॥ ३॥ सजी रोषाक तन प्यारे, वैठ वग्धी फिरे सारे । ले जिन शर्ण वा तारे, चौथमल यों जिताता है ॥४॥
८४ क्रोध निषेधः .. (तर्ज-या हसीना वसमदीना, करबला में तू न जा) ...श्रादत तेरी गई:बिगड़, इस क्रोध के परतापं से । अंजीज को बुरा लगे, इस क्रोध के परताप से ॥टेर ॥. दुश्मन से