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जैन सुवोध गुटका।
(५५) तुझे युवानी का जोर, राज्य धन फौज का है और । आखिर तो जाना छोड़, यहां दिन चार का रहना ॥ ३ ॥ सज्जन ये सद्गुणी वानी, करो शुभ धर्म सुखदानी। चौथमल कहे सुन प्रानी, यही लेना यही देना ॥ ४॥
८१ नेक नसीहत... (तर्ग--या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) दिल सताना नहीं रवा यह खुदा का फरमान है । खाप्स इबादत के लिए, पैदा हुश्रा इन्सान है॥टेर ॥ दिल बड़ी है चीज जहां में, खोल के देखो चशम। दिल गया तो क्या रहा, मुर्दा तो वह स्मशान है। दिल० ॥१॥ जुल्म जो करता उसे, हाकिम भी यहां पर दे सजा। मुश्राफ हरगिज हो नहीं, कानून के दरम्यान है ।। २ ॥ जैसे अपनी जान को, पाराम तो प्यारा लगे। ऐसे गैरों को समझ तू. क्यों बना नादान है । ३॥ नेकी फा ६दला नेक है, कुरान में लिखा सफा । मत वदी पर'कस कमर, तू क्यों हुआ बेईमान है ॥ ४ ॥ वे गुफ्तगु दोजखमें, गिरफतार तो होगा सही। गिन्ती वहां होती नहीं, चाहे राजा या दीवान है॥५॥ वैठकर तू तख्त पर, गरीबों की तेने नहीं
सुनी। फरीश्ते वहां पिटते, होता बड़ा हैरान है ॥ ६ ॥ गते । • कातिल के वहां, फेरायगा लेके छुरा । इन्लान होके ना गिर्ने,
यह भी तो कोई जान है ॥ ७ ॥ रहम को लाके जरा तू, सख्त दिल को छोड़ दे। चौथमल कहे हो भला, जो इस तरफ कुछ ध्यान है ॥ ८॥
८२ स्त्री हित बोध..
(देशी-धूसो वाजेरे) थे तो मुणजो ए वाह वाह थे तो सुणजोए सुलक्षणी सर्व सुंदरयां ॥ टेर ॥ देवर कंथ से लड़ाई न करजो, सासु श्वसुर