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जैन सुबोध गुटका |
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चोरी चुगली करे पराई, परवा नहीं भगवान की । ठंठाबाजी करे रात दिन, लड़वा में अगवानकी ॥ ३ ॥ काम
हो आदत ऐसी, जूं कावी के श्वान की । झूठे कलंक देवे पर के सर, नहीं चिन्ता अपमान की ॥ ४ ॥ सर्प सरीखो क्रोध बदन में, नहीं सोचे लाभ नुकसान की । गुरू परसादे चौथमल कहे, सुखे न शिक्षा ज्ञान की ॥ ५ ॥ १२ प्रभु प्रार्थना.
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( तर्ज - ना छेड़ो गाली दूंगारे भरवादो मोए नीर ) सुनिये प्रभु विनय हमारी, क्यों देरी मेरी बार ||टेर || दीनबन्धु दीनानाथ, संकट मेटन साक्षात | मैं आयो तेरे दरबारीरे ॥ १ ॥ सीता की विपता निवारी, अग्नी का बनाया वारी । है अद्भुत महिमा थारी रे ॥ २ ॥ द्रौपदी की सभा मंकारी, तुम पत राखी उस बारी । किए लम्बे चीर विस्तारीरे ॥ ३ ॥ सुदर्शन को शूली चढ़ाया, जब उसने तुमको ध्याया | हुआ सिंहासन सुखकारीरे ॥ ४ ॥ कई भक्तों का प्राण बचाया, अत्र शरण चौथमल आया । दो भटपट मुझको तारीरे ॥ ५ ॥
१३ परभव सुख प्रबन्ध. (तर्ज-- पनजी मुंडे बोल )
ले संग खरचीरे २, परंभव की खरची लीधा सरसीरे || ढेर || कूड़ कपट कर धन कमाई, जोड़ जमी में धरसीरे । सुन्दर महल बागने छोड़ी, जाणो पड़सीरे ॥ १ ॥ श्रागे