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जैन सुबोध गुटका।
खाना चौक कहावे, चौथमल उपदश सुनावे । इस इन्दौर शहर मंझारी रे ॥ ७॥
१० तप का महत्व. (तर्ज-या दृशीना बस मदीना, करबला में तू न जा) ___ यह कर्म दलको तोड़ने में,तप बड़ा बलवान है । काम दावानल बुझाने, मेघके समान है | टेर ।। ग्रासरूपी सर्प कीलन, मंत्र यह परधान है। विधन धन तम हरण को, तप जैसे मानु है ॥ १॥ लब्धिरूपी लक्ष्मी, की लता का यह मूल है। नंदिक्षिण विष्णु कुंवर का, साराही बयान है ॥२॥ वन दहन में आग है, और आग उपशम मेघ है। मेघ हरण को अनल है, और कर्म को तप ध्यान है।॥३॥ देवता कर जोड़ के. तपवान के हाजिर रहे । वर्धमान प्रभु तप तपे, उपना जो केवल ज्ञान है ।। ४ ।। गुरु के परमाद से, करे चौथमल ऐसा जिकर । आमासही ऋद्धि मिले, यही स्वर्ग सुख की खान है ॥ ५ ॥
११ दुर्बुद्धि. (तर्ज-थारो नरभव निप्फल जाय जगत का खन्नमें)
ऐसे विनाश काले, विपरीत बुद्धि इन्सान की टे। पाप कर्म में धन ने खरचे, नहीं इच्छा पुण्य दान की। चोले ड्रउ दे गवाही झूठी, नहीं प्रतीत जवान की ।। १॥. नित्य घर में कुसंप चलावे, बात नहीं धम्म ध्यान की। मान मर्यादा छोड़ चले, नहीं माने नीतिवान की ॥२॥