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________________ जैन सुबोध गुटका। (७) नवी के कदमों पे गिरा । शिकार से तौबा करी, हुआ नेक ला इमान कर ॥ ८॥ मय बच्चों के आजादगी, हिरणी को रस्सा खोलकर । दे दुआ हिरणी गई, बन बीच सुख वो मानकर ॥ ६॥ खुदा के प्यारे ऊमत के सरवर, ऐसे नबी साहिब हुए । रहम ला हिरणी बचाई, बात को परमान कर ॥ १० ॥ वे जबां को मारना, कर रब को ये मंजूर है । छोड़दे गफलत को अय दिल, आगे का सामान कर ॥ ११॥ हिरणी नामे पे करा, इस नजम को सारा खतम, चौथमल देता नसीहत, इस तरफ कुछ ध्यान कर ॥ १२ ॥ 8 स्वार्थ मय संसार, (तर्जना खेडो गाली दूंगारे, भरने दे मोय नीर) दुनियां मतलब की यारीरे, तू किण से बांधे प्रीत ॥टेर ॥ भाई को भाई वुलावे, बे मतलब वो छिटकावे । नहीं आने दे घर द्वारीरे ॥१॥ माता सुपुत्र बताने, जो . धन कमाई ने लावे । वे मतलव देवे निकारीरे ॥ २॥ यूं मीठी बोले बेना, वीरा कोड़ दिवाली जीना । बे मतलब देवे विसारीरे ॥ ३ ॥ नारी अति प्रेम रचावे, भरतार कर तार बतावे । बेमतलब बोले करारीरे ॥ ४ ॥ एक नारी थी अति प्यारी, निज बालम को उस वारी । उन्हें दिया कूप में डारीरे ॥ ५ ॥ सब झूठा जगत पसारा, तुझे सम झाऊं हर पारा । मैं जोड़ी जैसी निहारीरे ॥६॥ वजाज
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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