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- जैन सुवोध गुटका।
वैराग्य में छावरे ॥ ५॥ राज्य कुंवर ने राज्य देई, राणीने समझावरे । प्रत्येक बुद्धि संयम ले फिर, मोक्ष सिधावरे ॥ ६ ॥ साल गुण्यासी रतनपुरी, फागण बदि चउदस आवरे । पूज्य प्रसाद चौथमल, सुख संपत पावरे ॥ ७ ॥
८ करुणा रस (या हशीना बस मदीना, करबला में तू न जा) . .
रहम करले अय.दिला, सवाय इसमें मानकर। रहम बड़ी है चीज जहांमें, अय सनम पहिचान कर ॥टेर ।। नबी महमद रसूल हकका, एक रोज जंगल में गये । देखा तो हिरणी को किसीने, वांध रक्खी तान कर ।। १॥ देख हजरत को वह हिरणी, इन्सान की बोली जवां । महरयां हो खोलदो, मश्कीन मुझको जानकर ॥२॥ जान बच्चों की पचेगी, दूध मिलने पर सही। सुनके हजरत बोले मेरी, बात पर तू ध्यान कर॥३॥ करना क्या जो तू न आवे, हिरणी कह सुनलो बयां । देती हूं जामिन खुदा तुमको पेगम्बर मानकर ॥ ४ ॥ रहम ला उस हिरणी को, हजरत ने फोरन खोलदी। इधर एक दम फिर वहां, बोला शिकारी प्रानकर ॥ ५॥ खोली किसने हिरणी को, हजरत कहे हम ही तो हैं । पाती अभी खामोश कर, मत बोल ज्यादा तान कर ॥६॥ इतने में मय बच्चों के, आ हिरणी हाजिर होगई । रो के बच्चे कहे छुड़ादो, अम्मा को अहसान कर ॥ ७॥ बच्चों की बातें सुन शिकारी,