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जैन सुबोध गुटका। खेत में, फिर बीज बोना चाहिये ॥ ३ ॥ मुंह को धोती है बिल्ली, स्लान भी कन्या करे । ध्यान बक कैसा घरे, ऐसा न होना चाहिये ॥ ४॥ गुरु के प्रसाद से, कहे चौथमल सुन लीजिये । झूठ गोहर छोड़दे, सच्चे पिरोना चाहिये ॥५॥
५सु स्त्री. (तथारो नरभव निष्फल जाय, जगत. का खेल में)
ऐसी पतिव्रता मिले नार पुरुष पुण्यवान को ॥ टेर॥ पंखो ढोरी अन्न जिमावे, समझे पिउ भगवान् को । दासी समान हो हुकम उठावे, बोले मिष्ट जवान को ॥१॥ सास सुसर का मात पिता ज्यूं, माने वह फरमान को । लजा नम्रतावंत भ्रात ज्यूं, समझे पर इन्सान को ।। २ ॥ कुलोद्धारिणी कुल बर्द्धक वही, घर श्रङ्गार कुलवान को । सत्य सलाह देके समझाये, लाभ और नुकसान को ॥३॥ विपति में सहायक पतिको, देवे साज धर्म ध्यान को । पति रक्षक अति क्षम्यावान् वो, आदर करे महमान को ॥४॥देव गुरु की भक्ति करे है, अभ्यास करे नित ज्ञान को । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, स्मरे सीता इतिहास को ॥ ५ ॥
६ द्रोपदी का चीर हरण. .(तर्जना छेड़ो गाली दूंगारे, भरवादो मोय नीर) - मैं तो आई शरण तुम्हारीरे, प्रभु कीजे मेरी सहाय ॥ टेर ।। सती द्रौपदी राणी, ग्रही दुष्ट दुशासन तानी । फिर लाया सभा मंझारी रे॥११॥ सती देखे निगाह पसारी