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जैन सुवोध गुटका।
धंधो पाछे धंधो, धंधो कर २ मरसीरे । धर्म सुकृत नाय करे, परभव काई करसीरे ॥२॥ राजा वकील बेरिस्टर. से, कर मोहबत तूं संग फिरसीरे । कौन छुड़ावे काल आय,. जब घंटी पकड़सीरे ॥३॥ पांच कोस गामांतर खातिर, खरची लेई निकलसीरे । नया शहर है दूर, नहीं मनियाडर मिलसीरे।। ४ ॥ यौवन की थने छाक चढ़ी, बुढ़ापा आया.. उतरसीरे । इस तनकी तो होसी खाक, कहां तक निरखसीरे ॥ ५॥ घरकी नारी हांडी फोड़ने, पाछी घरमें वरसीरे। मसाण भूमि में छोड़ थने, फिर कुटुम्म विछड़सीरे ।। ६ ।। लख चौरासी की घाटी करड़ी, कैसे पार उतरतीरे । रत्ती सीख नहीं लागे थारी छाती वजरसीरे ।। ७॥ साल गुण्यासी हातोद में, जिनवाणी जोर से वरसीरे । गुरू प्रसादे चौथमल कहे, किया धम्म सुधरसीरे ।। ८॥
१४ स्त्री शिक्षा. (तर्ज-स्वामी भले. विराजाजी) वायां सूतर सुणोए २,.सूतर सुण्या में लाभ घणो ॥टेर ॥ पांव पचीस मिल आइ बखाण में, बातां करवा मंडी । पापड़ बड़ियां दाल भात मैं, आइ बणाई. कड़ी ॥१॥ गेंदी कहे म्हारे आया जंबाई, गारां गावा लागी । धूरी कहे म्हारे पायो पियर को, पूछण ने रह गई श्रागी ॥२॥ फूली कहे नान्या का भाईजी, समझे नहीं समझाया । गेंद दियो सोनी ने घड़वा, हाल तलक नहीं लाया ॥३॥