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जैन सुबोध गुटका।
(११)
निर्थक वातां करवा में तो, घड़ियां बन्द लगावे । सज्झाय वोल की बात करे तो, उठी ने चली जावे ॥४॥ साधां के आतां लाजां मरो, व्याही के डेरे गाल्यां गावो । बरात गया पिछे ढूंढ्यो काडो, भंसा रोल भचावो ॥५॥ टमकू झमकू लाला गुलावां, मूली सब मिल जावे । केतो. काण को घर भांगे, के किणरे राड़ लगावे ॥६॥ साधु सतियां की निन्दा करना; सासु श्वसुर से लड़ना । इण बातों से सुणजो वायां लक्ष चौरासी फिरना ।। ७॥चौथमल कहे मुणजो बायां, मैं वखाण करवा लागो । एक चित्त से सूत्र सुणो थे निरथक वातां त्यागो ॥ ८॥
१५ प्रभु से मुक्तिदान की प्रार्थना.
(तर्ज-मांच.) ऋषभ प्रभु मांगु मोक्ष को दान कृपा कर दीजे श्री भगवान || टेर । लक्ष चौरासी में भटकत आयो, चवदे राज दरम्यान । आप सरीखा देव न दूजा, केवल ज्ञानी गुणवान ॥१॥ तुम गुण सिन्धु अपार पार नहीं, पावे कोई इन्सान। सुर गुरू महिमा कथ २ हारे,तो म्हारी एक जवान ॥२॥ अलख निरंजन तू अविनाशी; अगम अगोचर महान । नाम लियां सुख सम्पदा पावे, वरते क्रोड कल्याण ॥३॥ नाभी रायं मरू देवी के नन्दन, इखाग वंश के भान । गुरू प्रसादे चौथमल तो, शरण लियो है आन ॥४॥