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जैन सेवाय गुट ।
(१३) गुण स्थान सरे कोई, पहले पटक पान के हो हंसजी । हंसजी चौरासी लक्ष योनिमेरे कोई, यही रुलाये नान के हो हंसजी ॥२॥ हंपनी, पाएटलीपुर एक नगर मेरे कोई, सेट धनाउ है सर हो हंसजी । मजी, दो गोरी को साहयोरे कोई, छोटी से मोह अति करे हो हंसनी ॥ ३ ॥ इंसी, सेठ के पाप संयोग सेरे कोई वेदना होगई एकदा ही हंसजी । हंसजी, श्रीपधी लेवा काजर कोई, घर में गई लघु परमदा हो हंसजी॥ ४॥ हंसजी, नारी के लगी शिर चाटरे कोई, जीव उणरो घर गयो हो हंसजी । मजी, बात सुनी ने सेठजी कोई, मोह वश में हो मर गया हो हंसजी॥५॥ हंसजी, तस प्यारी के शीश मेरे कोई, कीट पणे हुयो सेठजी हो हंसजी । हंसजी एसे श्रम संसार मेरे कोई, मोह वश में वो सेटजी हो हंसजी ॥६॥ हंसजी, माह कमललो जीतो कोई तो मिल जावे शिवपुरी,हो हंसजी । हंसजी, गुरु होर - लाल प्रसाद सेरे कोई, चौथमल शिचा करी हो सजी ||
२६५ योवन की अस्थिरता.
(तय प्याली) क्यों न इतना अकड़ के फिर, तेरा हुश्न सो रहने का है ही नहीं। जो दरिया का पूर सा जाता चला, यह तो किसी के कहने में है ही नहीं ॥टेर ॥ पोशाक