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(१७६) : जैन सुबोध गुटका। ; . जोर नहीं । कोई ऐसा सनमः मुझे देवे मिला, उससा उपकारा पार नहीं:॥ टेर ।। आप बसो हो मे.क्षनगर, जहां बादल न विज़ली अगन का खतर । वहां शाम सुबह नहीं शमसोकमर, फिर हजूर मजूर का तौर नहीं ।। मेरा०॥ ॥१॥न रूप न रंग संयोग वहां, न योग न भोग न रोग.न शोक । न खान न पान न तान: न मान, वहां. जन्म मरण की ठौर नहीं ।। मेरा०॥.२ ॥ मैं मोहके मुल्क : में नाहीं रहूं, मुझे प्यारी लगे शिव की नगरी । मनभाता यही मिलुं वहाँ पे आई, जहां जुल्म का कोई शोर नहीं। मेरा० ॥ ३ ॥ संजम देना था बहुत कठिन; अरे ! चौथमल को सुनो सज्जन । डर दूर किया जिम जो दिया गर हीरालाल सा और नहीं। मेरा०॥४॥..
.. २५८ उपमित विश्व.. (तर्ज-ठुमरी-रथ चढ़ रघुनंदन पावत है) कसा विश्व का रेल बनी, एक आवत है एक जावत है॥टेर ॥ चारों गति के लम्बे चीले । चारों दृग विछा वत है ।। कसी० ॥ १ ॥ चौरासी लक्ष योनिसे फिर, कोई छोटे बड़े कहावत है ॥ कैसी० ॥२॥ कई सवारी आकर उतरी, वहां बाजा कई बजावत है ॥ कैसी० ॥. ॥३॥ कहीं सवारी.लदी पड़ी है, वहां पर रुदन मचावत