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जन गुयोध गुट।
(१७७) हैं ॥ कैसी० ॥ ४ ॥ रीति भरी भरी की रीति, इम गाडी चक्कर खावत है ।। कैसी० ॥ ५ ॥ ऐसा तार लगा कुदरत का, गाड़ी नहीं टकरावत है । सी०॥६॥ टौर २ पर हे स्टेशन, नहीं श्रागा पीछा पहुंचावत है कैसी० ॥ ७ ॥ सिद्धपुर में एक शहर अनोखा, वहां गये बाद नहीं श्रावत है ॥ कैसी. ॥ ८ ॥ पाप पुण्य धर्म ये तीनों, कृत्य व यू टिकिट वटावत है ।। कैसी० ॥६॥ नरक तिर्वच मनुष्य देवता, न्यारे न्यारे पठाचत है कैसी० ॥१०। चौथमल कई काल है इञ्जन, दिन रात यह धूम मचावतह ।। कैसी०॥१६॥
। २५६ राजल प्रार्थना. . .
(तर्ज-ऐसी चतुर सम्खी न मिली) . मेरा पिउ गिरनारी पर जाय बसे, मैं किसको कई भैरी कौन सुने । श्राप विराजते हममे निकट तो वहां की खबरिया भंगालेती॥१॥ मेरे दिल में प्राव जोगनिया रन, मैं तो छोड़ शहर उसी वन में चलूं । ऐसी प्रभुनी की चानी जबर, मेरी नींद अनादि की उड़ादेती ।।३। मैं तो पिया तेरे दर्शन. की प्यासी, मुझे सांवरी सूरत दिखायोग कर । जो नेम पिया मिलते यहां तो चरणों में शीश मुकादेती ॥३॥सती राजिमति भेटे नेम जती, गई मांद गती नहीं झूठी कथी। चौथमल की रती व नित्त प्रति. लगी प्रीत मेरी नेम जिन सेती ॥ ४ ॥