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जैन सुबोध गुटका |
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वाला हैं, वह क्या उसमें विशेष करे। जिसका दिमाग काम नहीं देता, वह क्या हर एक से बहस करे । जो असली में है झूठा, वह सच्चा ऊजर क्या पेश करे। जो विषयों में रहे रक्त वह कैसे गुरु कहलावेगा || जो० || २ || खुद की जिसको खबर नहीं, यह शख्स ख़ुदा को क्या जाने । जो खुद ही पक्षपाती वन बैठा, वह इन्साफ को क्या छाने । जिस में नहीं है सहनशीलता, उसको कौन बड़ा माने । जिसका जिसको नहीं तजुर्बा, वह उसको क्या पहचाने । जो खुद ही भूला हुआ है, वह गैरों को क्या बतलावेगा || जो० || ३ || जिसके दिल में दया धर्म नहीं, बड़ दुनियां में क्या इन्सान | जिसका चित्त चंचल भोगों में, उसको कठिन याना धर्म ध्यान । श्राराम श्राकवत में कब पावे, दिया नहीं जिसने यहां दान । हिताहित का बोध हो कैसे, जिसने सुना नहीं गुरु से ज्ञान | मुनि चौथमल कहे बबूल बोके, कैसे श्राम वह खावेगा || जो० ॥ ४ ॥
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२५५ रक्षक की आवश्यकता.
[ तर्ज--मजा देते हैं क्या यार तेरे ]
कोई नर ऐसा पैदा हो, भारत घीर बंधाने वाला || ढेर | जो होते प्राज गोपाल, तो न करते किसी से सवाल | कैसा श्राया है दुष्काल, सत्य मर्यादा मिटाने वाला || कोई० ॥ १ ॥ पढ गए ठग हत्यारे चोर, खरीदें धन २ हिन्दू दोर । निर्देवी जुल्म