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जैन सुबोध गुटका।
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सर्वज्ञ नाम तुम्हारो । झूठ नहीं वात लगारो ॥२॥ वेवार दशा देखी ने दुनियां, देत है जी झिकारो । करज उतरसी कैसे हो स्वामी, जो लावे मांग उधारो । चढ़े यो उलटो भारो॥३॥ महावीर जिनराज दयाकर,अपना विरष समारो चौथमल शरणे आ पड़ीयो, जिम विम पार उतारो । एक प्रभु तेरो ही सहारो ॥४॥
१९४ द्विलोक संतापिनी पर स्त्री (तर्ज-तुलसी मगन भये हरि गुण गायफे)
चतुर न कीजो संग चौथा अधरमकी ॥टेर॥कामण युग में कामण कारी, जहर फेसी बेली जानो नागिन सार की ॥ चतुरन० ॥ १ ॥ परनारी है ऐंठ को सो कुण्डो, मुंडो डूबो नर मँडो असाचार की ॥२॥रावण राजा श्रीखण्ड को नायक, सीता हरण कीधी रामजी का घर की ॥३॥ हाथ न आयो कुछ अपयश लई मुंओ, होगई बात जांकी बिना शरम की ॥ ४ ॥ इस भव में तो धन जोवन लूटे, परभव में देने वाली है नारकी॥५॥ साँची २ देखी जैसी जिन माखी, तोरे तो न लगी जिया, तोरा करमकी ॥ ६॥ चौथमल कहे शीलवत धर, मान मान सीख - गुरु परम की ॥ ७॥