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________________ (१२६) जैन सुबोध गुटका । ___ १६५ प्रात्मा पवित्र करने का उपाय.. . (तर्ज-चलत) मुगत में सुख है दुःख न न न न् ॥ टेर ॥ कर. तप संयम जोर लगाले, कर्म कटत है खनननन् ।। मु० ॥१॥ ज्ञान दर्शन चारित्र पाराधो, धर्म कथा कहो भनन न न न न् ॥ २॥ पाप करंता लज्जा आणो, धर्म करता गाजो धननन न न ॥ ३॥ इस विध करणी करो भव जीवां, आवागमन छटे छननननन् ॥ ४ ॥ शिव अचल स्थान पधारो, चाजो मही में धनन न न न ॥ ५ ॥ अनंत सुख की लहर में विराजो, फेर न आवो इन न न न न ॥६॥चौथमल कहे गुरु हीरालालजी, ज्ञान सिखायो सन न न न न् ॥७॥ . १९६ मनुष्यं जन्म की महत्ता. (तर्ज पणिहारी। __ मनुष्य जन्म को पायने, सुनचेतनजी, कीजे खूब जतन चेतनजी, मत पड़ो जग जाल में, सुन चेतनजी, सुधपुर थारो वतन चेतनजी ॥१॥ आयो आप जो एकलो सुन चेतनजी नहीं लायो कोई संग चेतनजी, फेर जाती वेलां एकलो. सुन चेतनजी, समझो धरी उंमग चेतनजी ॥ २ ॥ काला. का घोला हुआ सुन चेतनजी, अजुअन समझो आप चेतनजी, दूत आया यमराज का सुन चेतनजी, मैं कहूं छ
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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