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निरोप |
( २४१ )
॥०॥
को विनाशो, नाम जन्मों में दर्ज करा || ३ || लई उससे जो पल में सन हो, मन दोनों पर जोर जिताथोरे ॥ क्यों० || ४ || मरने के बाद सम गे तुमको, जिसको तुम यहां पर ॥ ॥ ॥ ५ ॥ चधमन्तु कहे दवा को धारो, दिवा को दूर इटाभोरे ।। क्यों० ॥ ६ ॥
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( नर्म-भर भर जाम पिता
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३३६ अवसर.
मनुष्य जन्म अनमोल पाथकर, मन
गुललावा बनाके बनवाला ) वाशय !! भत व वृधा गंवाय चैन || देर | उनन कुन चा भूमि की, को देवता चहा | कौड़ी बदले देव स्तन यह तेरे हाथ से जाय || अब भूत० ॥ १ ॥ गोरे अंग को देव देख कर, फूला अंग न माए । चार दिनों की यह जवानी नदी पर ज्ं जाय || मद २० || २ || मात पिता की मोह माया में, प्राणी रह्यो लुमाय | राजा बाग्ना और दिवान से, की हे मित्रता जाय । मन व्ययः ॥ ३ ॥ जर जेवर का भरा बजाना, नहीं बने कुन गांव ॥ न कुएट में पड़ते तुझको रखने वाला नांय ॥ मन० ॥ ४ ॥ चेती, ज्ञानी यह परमाव | मंग नमाम् रात्रि भोजन, पेटीने यान | म ॥५ ॥ सारे