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जैन सुबोध गुटका !
जग का नाज मिलाके, भिन्न भिन्न करना चाप | मेले बीच में रतन बेच के, फेर कभी नहीं पाय || मत० ॥ ६ ॥ दुर्लभ हैं पर देवयोग से, यह भी गर मिल जाये । क्रांडे यतन कर नर तन खोया, नहीं मिले फेर आय || मन० ॥ ॥ ७ ॥ गुण्यांसी के सालं चौमासो, उज्जैन से गये उठाय । चौथमल कहे या वागसे, दोलत गजक मांय ॥ ० ॥
३३७ चोरी निषेध. ( तर्ज- दादरा :
मत की जो चोरी कहे ज्ञातारे || ढेर || चोरी जो करते पर द्रव्य हरते, कोई जेल के बीच मरजातारे || मत० ॥ ॥ १ ॥ लेने में चोरी देने में चोरी, कोई ग्रुप चुप से माल को खातारे ॥ मत० || २ || जेबों को कतरे, थैलियों उड़ावे, जाल का कागज बनातारे || मत: ॥ ३ ॥ चोर पुरूष कभी, सुख से न रहने, छुप के दिन को वितातारे ॥ मत० ॥ ४ ॥ चौथमल कहे चोरी को छोड़ो, जो तुम चाहो कुशज्ञतारे || सत० ॥ ५ ॥
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३३८ श्रायुगति( तर्ज - पंजी की ) '.
वय पलटावेरे, या संदा एक सी नहीं रहावेरे ॥टे
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