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जैन सुबोध गुटका।
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आगे को नर्क है । कहे चौथमल इसमें, कुछ भी न फर्क है। अरे जुल्मी ! क्यों पारामी बनाहै रे ॥४॥
- ~३३३ धार्भिक अस्पताल. (तर्ज-मालिन श्राई है विकानेरकी).
आएं वैद्य गुरुजी, लेलो दवाई विना फीसकी ॥टेर॥ लेलो दवाई है सुखदाई,देर करो मत भाई । नब्ज दिखाओ रोग वताओ, दो सब हाल सुनाईरे ॥ श्राए० ॥१॥ सत्संग की शीशी अन्दर, दवा ज्ञान गुण कारी । एक चित्त से पियो कान से, सकल मिटे विमारीरे ॥ आए० ॥२॥ टिटिसकोप और थर्मामेटर, मति श्रुति ज्ञान लगाओ। साध्य असाध्य भवी अभवी, भेद रोगका पाओरे ॥श्राए।। ॥३॥ दया सत्य दत्त ब्रह्मचर्य है, निर्ममत्व फिर खास । शम दम उपशम कई किसमकी, दवा हमारे पास आए। ॥४॥ रावण कंश मरे इस कारण, रोग हुत्रा अभिमान। लोभ रोग ने भी पहुंचाई अनन्त जीव की हानरे॥पाए, ॥५॥ जुना मांस मदिरा है वैश्या, चोरी बुरी शिकार । परनारी यह सब वद परहेजी, बचे रहो हुशियारे ॥ पाए ॥ ६ ॥ त्याग तप से ताव तिजारी, रोग शोक मिटजावे । हो निरोग शिव महल सिधावे, मन इच्छित फल पावरे ॥आए०॥ ७ ॥ चर्चा चूरण वड़ा तेज है, जो कोई इसको