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जन मुबोध गुटकाः। (२३७) घोवेगा। कौन चेटा कौन चाप है। करनी फल पावेगा। गुमति ॥ ३॥ चोरी करी चोर धन लाये, चाटुम्ब मीली वाला चेगा । भुगतण समय एकलो, नहीं कोई सुहागा गुमति ॥ ४ ॥ पापी की सौयत मत कीजे, उल्टो पाट बढ़ायेगा। इतना को होसी होसी, समझायेगा ।। गुमात०॥ ॥ ५॥पापी जो वतुएट नायतो, धम्मी नरक जावेगा। नहीं हुई नहीं होने की, पापी पछतायेगा । मुमति ॥६॥ धम्मी ने नहीं देवेसहायता, पापी ने पढ़ायेगा। पंट पत्थर की नाय में, वो इसी जावेगा। मुमति० ॥७॥ गुरु प्रसादे चाथमल कहे, धर्म कियां तिरजांधगा । असी साल नीमन कमांही, जोड़ मुनायगा ।। सुमनि ॥८॥
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३३२ रहीवाजी निपध, - (रा-दादरा) पिया रंडी के जाना मना हरे ॥ टेर ॥ जात होटी के घर, तुमको शर्म नहीं फिजून इक्षत को सोने, रहदा धर्म नहीं । शारा में बहुत गुनाह रे ॥ पिया० ।। १॥ रंडी जो पिया हमसे सरती दुध प्यार लिटती धन, शार योवन की बहार ! इस सोचत में नुकसान पना । दिगा० ॥२ ॥ पोशाक उसके लिये, मनी लस । फर्ना बजार से ले, शिरपे चढ़ाने हो । मप यह कानों में सुनारे पिया ॥३॥ यहां पर नो
पाशिर