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जैन सुवोध गुंटका
जिस्म पै,कूचे में घूमते हो। खूब सूरत देखके,अकल को भूलते हो । धन योवन की बहार लूटांते हो । पिया०॥ १॥ पर की औरतं बक रही, जिसका न ध्यान है। घर में न टिके पांच, फंसी उसमें जान है ॥ नहीं मजा क्यों. इज्जत घटाते हो ॥ पिया० ॥ २॥ हुश्न भद्दा पड़ गया, नहीं मुंह पर नूर है। बुढ़े सीभड़क दीखे, जवानी जरूर हैं !! चना नुक्सा दवा तुम खाते हो ।। पिया०॥३॥.थोड़े दिनों में बद चलन, बाधा बनायेगा। देकर के तुम्बी हाथ में, यहां से भगायगा। इन बातों पे ध्यान न लाते हो | पिया। ॥४॥ मेरी कहन पे पिया कुछ भी ध्यान दो। परनार को पिया जी, जल्दी से त्याग दो । उर चौथमल की शिक्षा न लाते हो ॥ पिया० ॥ ५॥
.३४० प्रमाद त्याज्य
(तर्ज-बनजारा). तुमं रहना यहां हुशियांरा, जीवराज मुसाफिर प्यारा ॥टेर ॥ ऐ भोले परदेशी ! दिन कितना यहां पर रहसी जी कुछ दम का समझ गुजारा ॥ जीव० ॥१॥ इस शहर में कुमता..नारी | कई राजा दिए फंद डारीजी ।। जिसका है अजब नखरारा: ॥ जीव: ॥२॥ धर्म कही हिंसा करावे, तुझे भोग बीच ललचावेजी । छल: बल की