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________________ (३१८) जैन सुवोध गुटका । के ही ऊपर रीजो मती ॥ २ ॥ चूसने में खून को, जलोक मानिन्द जानलो । फायदा इस में नहीं, सच्ची कहें हम मान लो ॥ मीठी देख उसे तुम रीझो मती॥ ३॥ सत्ताईस क्रोड़ रुपयों का, होता खरच हरसाल में। अय हिन्दवासी भाइयों कुछ भी लाओ ख्याल में ॥ कभी भूल के चहा तुम छजो प्रती ॥४॥ फिजूल खर्चा बन्द कर, सत्कर्म में दो माल को । चौथमल कहे है नहीं, देखो भरोसा काल को ।। कर के कुकृत्य अपयश लीजो मती ।। ५॥ .. ko _ नम्बर ४३१ . . . : . (तर्ज-पूर्ववत् ) दारू भूल के पीने न जाया करो। पागल पन को खरीद न लाया करो ॥ टेर ॥ शराब पीने वालों को कुछ. भी न रहता भान है । हैवान कहते हैं सभी रहता न कोई ज्ञान है ।। ऐसे स्थान पे भूल न जाया करो ॥१॥ वकता है मुंह से गालियां, इन्सान पागल की तरह । नालियों में जा गिरे, पेशाब कूकर पा करे ।। इसके पीने से दिल को : हटाया करो ॥ २॥ माँ-बहिन का भी मान वो, नर.भूल जाता है सभी । मार देता जान से तलवार लेके वो कभी॥ जुल्म करने से बाज तुम आया करो॥३॥ बदबू निकलती मुंह से, शराब पीने से सदा । अच्छे पुरुष छूते नहीं,हाथ से
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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