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सहारो। इसलिये कर दया धर्म, आत्मा नारी । कई चौथमल जिन्दगी को, अब तो सुधारी ॥ ५ ॥
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. २६ हंस काया संवाद. (तर्ज-धो उमराय यारी सूरत प्यारी लागे मांजगज)
काया कर जोड़ी कहरे, सुन व्हाला मुभ-वात । बाल पना की प्रीतडीरे, मत छोड़ो मुझ सात हो हंसराजाथांमु न्यारी में नहीं रहसा म्हारा राज ॥ ईसराजनी हो प्याराजी ।॥ १ ॥ध मांही जैसे घी बसेरे, फूल में बसे सुगन्ध । ज्यं म्हारा तन में बसोरे, तिल में नेल सम्बन्ध । हो हंसराज वर जोड़ी को न्याय विचारो म्हारा राज हंसराजनी हो० ॥२॥ विन प्यारा, प्यारी किसीरे, चंद्र, विना ज्यू रेन । साप बिना आदर नहींरे, कोई न राखे रोन, मो
सराज मेरी विनतड़ी अवधारो म्हारा राज ।। हंसराजजी होम्हागराज।।३॥ सुन्दर सेजां बीचोरे, की धी परत किलोल । नेनों से शांमु गिरे मुख से सने न बोल हो जीवराज तुमने मुझसे मरजी उतारी म्हारा राज ।। हंगराजजी हो० ॥४॥ वन कहे गुन सुन्दरी रे, मेरे तुम प्रीत । स्वमा में छोटनहारे मन में बात चीत । हे मुन पारी काल के भागे न जोर हमारो म्हारा राज | हंसराजनी ॥ ५ ॥ कान री माने नहीर खानी में नहीं नन।