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जैन सुबोध गुटका !
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अक्लमन्द है, होशियार जो है दिला । भूल के अखत्यार मत कर, जाहिल की सौबत छोड़दे ॥ अगर० ॥ २ ॥ जाहिल से मिलता मत रहे, मानिंद शक्कर सीर के । भाग मुनाफिक तीर के, जाहिल की सौबत छोड़दे ॥ २ ॥ दुशमन भी अक्लमन्द बेहतर, होवे जाहिल दोस्त के परहेजगारी है भली, जाहिल की सौबत छोड़दे || ३ || फेलवद के जाहिलों से, नेकी तो मिलती नहीं । सिवा कोल वद के नहीं सुने, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ४ ॥ रहम दिल का पाकपन, इबादत भी तर्क हो । ईमान भी जावे बिगड़, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ५ ॥ जाहिल तो श्राखिर ए दिला, दोजख के अंदर जायगा । निजात नहीं होगा कभी, जाहिल की सौवत छोड़ने ॥ ६ ॥ नशा पीना जुल्म करना, लड़ना लेना नींद का । गरूर श्रादत जाहिलों की, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ७ ॥ जाहिलपन की दवा मियां, लुकमान के घर में नहीं । सिविल सर्जन के हाथ क्या, जाहिल की सौवत छोड़दे ॥ ८ ॥ गुरु के परसाद से, कहे चौथमल तू कर निगाह । श्रालिम की सौवत कर सदा, जा'हिल की सौबत छोड़दे ॥ ६ ॥
१४१ मनुष्य के दशांग. (तर्ज - पनजी मूंडे वोल )
आज दिन फलीयोरे २ थांने जोग बोल यो दश को मिलियोरे || ढेर || मनुष्य जन्म और आर्य भूमि, उत्तम कुल को योगोरे । दीर्घ आयु और पूर्ण इन्द्री, शरीर निरोगोरे ॥ श्राज० ॥ ॥ १ ॥ सद्गुरु कनक कामनी त्यागी, आप तिरे पर तारेरे । तप क्षमा दया रस भीना, सूत्र उच्चारेरे ॥ २ ॥ ये आठ बोल