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जैन सुबोध गुटका।
वणा इक्कीस में पद, वीर जिनन्द फरमावे।। कैसा०॥१॥कोई
असुर ताजी नरक तले सहलं करण को जावे। त्यांथी चवीने सिद्ध शिला में, एकेन्द्री हो जावे ॥२॥ क्षीर समुद्र में व्यन्वर देव कई,मन की मौजा करता त्यांथी चवी ने अपकाया ने, जन्म तुरंत वो धरता ॥३॥ ज्योतिष देव कोई देवीके संग . मान सरोवर मांही । त्यांची चवीने कमल बीच में उत्पन्न होके जाई ॥ ४ ॥ दूजा वर्ग को कोई देवता, देखे नाटक सारी । त्याची चवी ने निज कुण्डलमें, लेतजन्म वह धारी । ॥ ५॥ संसारं स्वर्ग का कोई देवता, पंएडकवन में आयो। त्यांथी चवीने बीच वावडी, मच्छ तणो तन: पायोः॥६॥ अच्चू स्वर्ग को कोई देवता, मनुष्य लोक मझार । स्त्री के संग क्रीडा करतो, चवीं ले तहां अवतार ॥७॥ चेतचेत! कर धर्म अज्ञानी, खबर काल की नाहीं। गुरु हीरालाल प्रसादे चौथमल । जोधाणे जोद बनाई.॥८॥.
२२७ सत्य सर्वस्व..
(तर्ज इन्द्रसभा) सत्य धरजो सब मानवी, लई मनुष्य जन्म अवतार। सत्य सोही.भगवंत है, सत्य: सुख :सम्पत दातार | टेर।।. अग्नि.मिट्टी पानी हुए है सत्य की महिमा अपार । सत्य. धारी हुा राजा. हरिश्चन्द्र जिसका यह अधिकार ॥ .