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जन सुपोध गुटका।
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सत्य धारो सब नर नारी ॥१०॥ गुरु हीरालालजी ज्ञानी, चौथमल को सिखाई जिन वाणीजी,मेरे गुरु बड़े उपकारी ॥१९॥ शहर जावद के माई,मैने वीच समा गाईनी, सडसठ के साल मझारी ।। १२॥ .
२२५ धर्म ही एक मात्र सहायक,
(तर्ज-तू ही तू ही याद सावरे दरद में)
फेवल तेरे धर्म सहाई २ टेस। मुख परम दाता धर्म त्यागी। शास्त्र वाक्य को दूर हटाई । के०॥१॥ शान्ति समाधी भंग करी ने,परदेशों में भटके जाई ।। २।अन्याय विरुद्धाचरण करिने, यद्यपि ने द्रव्य सम्पदा पाई ॥३॥ काल आयु तुझ कंठ पकड़सी । सो धन पाछे न लेत बचाई ॥४॥ लाख कोई चाहे अब खर्च दे। सिंह मृगवत् सके न छुड़ाई ॥५॥ माता पिता भगिनी सुत नारी। धन घांटन होत सखाई ॥६॥ गुरू प्रसादे चौथमल कहे । वीर प्रभु को भजले भाई ॥ ७॥
.. २२६ कस्मों का खेल.. . (तर्ज यानन्द पर्ते हो जिनन्द तेरे नाम स). . . फैसा कम्मों का यह खेल बताया केवलीमाटेतामनुष्य सो किस गिनती में सरे, देवों का हाल सुनावे । सूत्र पत्र