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(२१२) . जैन सुबोध गुटका । mmmmmmmmmmmmnaramanmarammaraan na नित्य देत निवारी, ज्यू रोगी का करत विनाश है, नहीं नफ़्स कभी मरता है।जो०॥४॥शीत भोजन अति न खावे, ज्यूं छोटी हंडी फटजाव, तन स्नान शोभा नहीं चावे, नहीं सजता तन श्रङ्गार है, रंक रत्न.न्याय वरता है। जो०॥॥ प्रश्न व्याकरण सम्बर जाहरी, वृत्तीस उपमा हेगी भारी,व्रत में दुश्कर-दुश्कर कारी, वह स्वयंभूरमण से : पार है, रही गंगा तुरत तिरता है । जो० ॥ ६॥ उन्नीसे बहत्तर का साल है, पालनपुर चौमासा रसाल है, गुरु मेरे हीरालाल है, कहे चौथमल श्रेयकार है, तो सर्व कार्य सरता है । जो० ॥ ७॥
. ३०० सुअवसर... । . . . . . (तर्ज दादरा) ... ___यह मनुष्य जन्म पुन्य योग से मिला सरे । तप संयम को आराध क्यों नहीं मोक्षःको वरे टेर-जो स्वर्ग बीच देव सोविपियों में मग्न है। न त्यागः धर्म उनसे हो चित्त, अप्पसरा हरे । मनुष्य०॥ १॥ हैवान तो.विवेक हीन, दीन से फिरे। घास पानी के लिये वो घूमते फिरे ।। मनुष्य०-२| कर कर के जुल्म खूब जाय:नके में-परे। भोग सदैव दुःख वो धर्म क्या करे ।। मनुष्य० ॥३॥ ऐसा अमोल वस्त पा जो भोग में फंसे । कञ्चन की थाल वीच जैसे, धूल शठ भरे ॥ मनु०॥ ४॥ जिगर के चश्म खोल, तोल बात सही को।