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________________ ( ३४० ) "जैन सुबोध गुटका | Ang मजिस्ट्रेट और डिपटी, और कप्तान तहसीलदार खुद ही आय जाती है || ३ || चौधरी पंच नंबरदार पटेल पटवारी जमादार, बनावे जा मुखी किसी को खुदा ही आय जाती है || ४ ||' चौथमल कहे भजो ईश्वर, तजी मोह माया दुनिया की, मुरतबा जो मिले बहेतर, खुदा ही आय जाती 1.' 2009 : ॐ वीर स्तुति महावीर मनमोहन प्रभुका, नाम है शान्तिकरण सदा । हार्दिक भाव से उसग उमग के, करता हूँ मैं स्मरण सदा ॥ वीतराग, जिन देव विश्व भवः सिन्धु तारण, तिरण सदा । कृमण करें तुम नाम हृदय में, मिथ्या कुमत तम हरण सदा ॥ प्रणमत इन्द्र, नरेन्द्र सुरासुर, अर्चित है तुम चरण सदा । भूतिप्रज्ञ' सर्वज्ञ, “चौथमल” दास तुमारे शरण सदा ।। ५ ॐ शान्ति !' शान्ति । शान्ति
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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