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________________ . ( . ह ) : सं० ส १६३ तुम्हें यहां से एक दिन १६४ तुम रहना यहां होशियार.. १६५ तुम्हारी देख के आदत १६६ तुरत रघुनाथजी आकर १६७ तूं है कौन यह ज्ञान -१६८ तेने बातों में जन्म गमायारे १६६ तेरा चेतन: यह नर तन - २०० तेरे दिल का तूं भ्रम '२०१ तेरे दिल में तो वह '२०२ तोकों वार वार समझाऊँरे '२०३ तोकों वार वार समझाऊँ हो - थ २०४ थांरो नरभव निष्फलं जाये '२०५ तो सांचा बोलो बोल २०६ तो सुणजोए वा वा า २०७ थोड़े जिने पे क्यों तूं गुमान द २०८ दया करने में जिया लगाया. २०६ दया करो २ संब भारत २१० दया की वो लता शुभ २११ दया क बिदुन ए. ब्रादर २१२ दयां को पाले है बुद्धवान 4 " २१३ दया को लेवे दिल में धार २१४ दया धर्म का डंका दुनियां २१५ दया धर्म का परिचय ' पृष्टाङ्क ३३७ २४४ २७८ १७ ३३३ ७७ १७४ ३३१ ३२० १४ २६ : ४६ ४३ ५५ ३३६ १२८ ३२६ २ १०४ २१३ १६२ २७६ ३१२
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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