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________________ (१०) पृष्टाङ्क :-२६५ :५३ १५० ३१८ : ६७ ३३० '५५ १.१३ ३३ २१६ दया धर्म जो करे उसीका : .:२१७ दया नहीं लावेरे २ पापी, ::: २१८ दयालु भैया मरे बे अपराध ..: . २१६ दान नित्य कीजरे २ अणी:: .. २२० दारू भूलके पीने न जाया करो, : २२१ दिल अपने में सोचो . २२२ दिल के अन्दर है खुदा . २२३ दिल में रखो विश्वास २२४ दिल सताना नही रवा २२५ दिल गाफिल न रहे : २२६ दीजो दान सदारे २ दीजो . २२७ दुनियां के बीच श्राय २२८ दुनियां तो मतलव की यार २२६ दुनियां मतलब की यारीरे.. २३० दुनियां में कैसे वीर थे २३१ दुनियां से चलना है २३२ दुनियां स्वपने सी जान' २३३ दुर्लभ नरका यह जन्म । २३४ दूर हटावो जी मच्छरता २३५ देकर सद्बोध जगाया ; २३६ देखी सुखुबी और की । २३७ देखो सुजान सट्टेने २३८ देता हूँ ज्ञान की ब्यूगल : १६३ રૂરરૂ ३३८ રર૦ ३०३ १९८. १०० ९५६ २३६ नर तन अमुल्य प्राणी : २४० नैनन में पुतली लड़े । :२३
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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