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________________ (१९) ૨૨૭ पृष्टीत . २४१ पंछी काहे को प्रीत लगावे " - २४२ पर त्रिया से प्रेम लगाओ .. ३०१ .२४३ पयूषण पर्व श्राज श्रायाः । .२५६ २४४ पलकर श्रायु जायरे चेतनियों: . . . १२३ २४५ पहिनों २ सखीरी ज्ञान गजरा २४६ पापिनी ममतारे ममता .११३ २४७ पापी तो पुण्य का मार्ग २६ २४८ पापों से मुझे छुडादोरे २४६ पा मौका सुकृत नहीं करता . १६६ २५० पाथ अव मनुष्य को . २६७ २५१ पावे न कोई पार श्रीकृष्ण १७८ २५२ पिया की इन्तजारी में २५३ पिया गैरों से मोहबत २४३ २५४ पिया रंडी के जाना मना । २३७ २५५ पुरुषारथ से सिद्धि २५६ पूछे बिभिषण हित ।। . २५७ पैदा हुश्रा है जहां में: . ३०४ २५८ प्यारे गफलत की नीन्दः २७३ .. २५६ प्यारे दया को हृदय लो २६२ २६० प्यार हिन्दू से कहना . .१३० - २६१ प्रभु कीजे रक्षा हमारीरें ... २६२ प्रभु के भजन बिन कैसे . २६३ प्रभुतेरी कृपा से बल ..४० २६४ प्रभु ध्यान से दिल को .२६५ प्रभु मुझे मुक्ति के म में .२२६ .२६६ प्राणीया कैसे होवेगा । • ४२ : २३४
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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